झांसी, अपराध करने वाला समझता है कि उसे कोई नहीं देख रहा, वह कभी पकड़ा नहीं जाएगा, लेकिन जब सबूत और गवाह एक मंच पर आ जाते हैं तो फैसला ऐतिहासिक बन जाता है, कुछ ऐसा ही हुआ मंगलवार की दोपहर झांसी जीआरपी के पास बने रेलवे कोर्ट में, जहां 15 साल पुराने एक मुकदमे को सुनकर न्यायालय अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट हितेश अग्रवाल की कोर्ट ने अपना निर्णय दिया, यह था मामला सन 2005 तीन मार्च की रात आरपीएफ पुलिस गश्त कर रही थी, इस दौरान जानकारी मिली की पुलिया नंबर 9 की तरफ एक ऑटो जिसका नंबर यूपी 93 बी 2870 बताया गया, उसमें रेलवे से चोरी किया गया लोहा बेचने के लिए ले जाया जा रहा है, आनन-फानन में पुलिस ने उस वाहन को रोकने की कोशिश की, तब तक गाड़ी चालक ने सीनियर स्कूल की तरफ गाड़ी को भगा दिया, लेकिन आरपीएफ पहले से सजग थी, घेराबंदी करके गाड़ी पकड़ ली गई, जिसमें अनिल साहू, अनीश, हीरालाल, बद्री प्रसाद और उनका एक साथ ही सवार था, मौके से एक आरोपी भागने में सफल रहा, पुलिस ने जब गाड़ी की तलाशी ली तो 7 नग एक्सेल बॉक्स रोलिंग वाले, 20 नग पीछे डिक्की में भरे हुए थे, अपराध को छिपाने की नीयत से टाट की बोरियों से ढका गया था, मुकदमा दौरान माल की कीमत ₹1 लाख 20 हज़ार आंकी गई, ऐसी हुआ निर्णय जिस वक्त पुलिस माल बरामद कर रही थी उस समय राजेश और सोहनलाल बरामदगी की जगह मौजूद थे, उन्होंने सच का साथ देते हुए मामले में अपनी गवाही दी, जिससे साफ हो गया कि अनिल साहू, अनीश, हीरालाल, बद्री प्रसाद चोरी के माल के साथ पकड़े गए हैं, गौरतलब है कि इसी मामले में अबरार नाम का व्यक्ति दौरान मुकदमा मर चुका है, कुल 4 लोगों के खिलाफ दोष सिद्ध हुआ है, जिसमें अभियोजन अधिकारी रेलवे सुरेंद्र कुमार तिवारी ने अहम भूमिका निभाई, सभी दोषियों को दो-दो वर्ष का साधारण कारावास और ₹30-30 हज़ार का जुर्माना अदा करने का आदेश दिया गया है, अर्थ दण्ड ना देने पर 3 माह की अतिरिक्त कारावास की सजा सुनाई गई है, इस मामले में दोषियों की तरफ से परिवीक्षा अधिनियम के तहत राहत मांगी गई थी, लेकिन मामला राष्ट्रीय संपत्ति चोरी का था इस वजह से परिवीक्षा अधिनियम के तहत राहत नहीं मिली है, सभी आरोपियों को जेल भेज दिया गया है,