खेत पर मेड़ और मेड़ पर नीम,अण्डी का पेड़, यदि है तो कीट फसल को नुकसान नही पहुंचायेंगे

samwadbundelkhand.com | Updated : 18/03/21 04:37 AM

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Jhansi

झाँसी, जिलाधिकारी आंद्रा वामसी ने पं0दीनदयाल उपाध्याय सभागार में आयोजित नेशनल फ्रूड सिक्योरिटी मिशन-टीबीओ मिनीमिशन के तहत वृक्ष जनित तेल कार्यक्रम सेमीनार का विधिवत दीपप्रज्जवित करते हुये शुभारम्भ किया। जिलाधिकारी ने सेमीनार का शुभारम्भ करते हुये उपस्थित किसानों से आव्हान किया कि वैज्ञानिकों द्वारा जो जानकारी दी जा रही है उन्हें आत्मसात करते हुये खेती किसानी में अपनायें ताकि जो मेहनत की जा रही है, उसका अधिक लाभ मिले। उन्होने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और किसान की आय कृषि पर निर्भर है। अतः अब समय आ गया कि किसान खेती के साथ वृक्षजनित तेल व औषधीय गुणों से भरपूर पेड़ पर फोकस करें क्योंकि ऐसे वृक्ष बुन्देलखण्ड क्षेत्र की जलवायु के लिए उपयुक्त है और कम मेहनत व पानी से इन्हें उगाया जा सकता है और यह लम्बे समय तक जीवित भी रहते है और लगातार आय वृद्वि में सहायक होते है। नीम का पेड़ औषधीय गुणों से जिलाधिकारी आंद्रा वामसी ने कहा कि महुआ व नीम का पेड़ औषधीय गुणों से भरपूर है, हमारे पूर्वज इसका बखूबी इस्तेमाल करते थे, उन्होंने कहा कि हमें महुआ के पेड़ को लेकर अपनी नकारात्मक सोच के स्थान पर सकारात्मक सोच पैदा करनी होगी। महुआ को सिर्फ अल्कोहल बनाए जाने की जानकारी है, जबकि यह पेड़ औषधि से भरपूर है उन्होंने बताया कि इस पेड़ से बटर (मक्खन) बनाया जाता है जिसकी जानकारी लोगों तक नहीं है उन्होंने कहा कि महुआ के पेड़ की पत्तियां भी औषधि के रूप में इस्तेमाल की जाती है, नीम के पेड़ की जानकारी देते हुए नीम को ऐसा कौन है जो नहीं जानता? नीम का इस्तेमाल घरेलू उपचार के साथ ही किसानी खेती में भी भरपूर किया जाता है उन्होंने बताया कि इन पेड़ों से निकलने वाले तेल का भी बखूबी प्रयोग किया जाता है परन्तु आज की आधुनिक खेती में इनका प्रयोग कमतर हो जाने से फसल व मृदा को नुकसान हो रहा है। हमें अब पुनः बिना रसायन उर्वरक के खेती को बढ़ावा देना होगा ताकि हमें फसल का वाजिब दाम मिले और मृदा का स्वास्थ्य भी बेहतर रहे, नीम बड़े काम का औषधीय वृक्ष है जिसका उपयोग टूथपेस्ट, क्रीम, दवाईयां, साबुन के साथ नीम कोटिंग यूरिया व कीटनाशक के रुप में बड़े स्तर पर इस्तेमाल कर रहे है। उन्होने कहा कि किसान नीम की पत्तियों, निमौली का कई प्रकार से प्रयोग में ला सकते है। क्षेत्र में पानी की उपलब्धता कम सेमीनार में मुख्य वक्ता के रुप में बोलते हुये जिलाधिकारी आंद्रा वामसी ने उपस्थित किसानों से कहा कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र में पानी की उपलब्धता कम है। पठारी क्षेत्र होने के कारण पानी ठहरता नही है। इस स्थिति में कम पानी वाली फसलों की ओर अधिक फोकस करना होगा, बुंदेलखंड में पारंपरिक खेती के साथ अब नई नई खेती की ओर भी बढ़ना होगा, क्षेत्र में ड्रैगन फ्रूट, स्ट्रॉबेरी की खेती को किसानों को अपनाने की सलाह दी। अब जैविक उत्पाद के लिये मार्केट उपलब्ध कराया जा रहा है, जिससे किसान की आय में बढ़ोत्तरी होगी और खेत की मिटटी भी पोषक तत्वों से भर जायेगी। भारतीय चरागाह एवं चारा वृक्ष जनित तेल सेमिनार के मंडलीय आयोजन में डॉ अनूप कुमार दीक्षित प्रधान वैज्ञानिक भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान झांसी ने बताया कि बुंदेलखंड में पशुपालन का खेती में महत्वपूर्ण योगदान है उन्होंने पशुपालन में हरे चारे की उपयोगिता का ध्यान रखते हुए कहा कि पशुपालन में 70% का खर्चा उनके आहार पर होता है जिसकी लागत को कम करके किसानों की आमदनी को बढ़ाया जा सकता है। रवि के मौसम में उपलब्ध जई के हरे चारे से गर्मी में चारे की कमी को दूर किया जा सकता है। वृक्षजनित तेल सेमीनार में वैज्ञानिक डाॅ पीके सोनी ने नीम व अण्डी के पेड़ को बेहद हितकारी व लाभकारी बताते हुये कहा कि यदि किसान अपने खेत की मेड़ पर अण्डी का पेड़ लगा ले तो इससे खेत सुरक्षित रहेगा तथा फसल भी कीटों से सुरक्षित रहेगी। इसके साथ ही अण्डी के तेल को बेच किसान अतिरिक्त लाभ ले सकता है। उन्होने बताया कि वैज्ञानिक शोध से यह स्पष्ट है कि चने के साथ अलसी की बुवाई की जाये तो चने में उक्टा नही लगता। अलसी की फसल में अतिवर्षा तथा ओलावृष्टि से भी नुकसान नही होता है। किसान अलसी खाने से 52 बीमारियों से बच सकता है। किसान अलसी बुवाई करें और लाभ कमायें। इसमें कम पानी का प्रयोग होता है तथा खाद नही डाली जाती है, इसकी खेती में सल्फर का प्रयोग होता है। कार्यक्रम में केन्द्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान संस्थान के डाॅ आर विष्णु ने कहा कि भारत आज भी तेल के लिये दूसरे देशों पर निर्भर है और बहुत सारा तेल हर साल आयात करता है। तिलहन फसलों के अतिरिक्त वृक्षजनित तेल की आज बहुत ज्यादा जरुरत है, क्योकि इसमें 30 से 70 प्रतिशत तक तेल निकलता है। जो खाद्य और बिना खाद्य भी है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में परम्परागत पेड़ जैसे नीम, महुआ आदि पेड़ों तथा गैर परम्परागत पेड़ जैसे रतनजोत, करंज आदि का बहुत स्कोप है। इसमें तेल के अलावा और भी उत्पाद मिलते है जिनका उपयोग कास्मेटिक, जैव ईधन, मेडीसन उद्योग में बहुत है।उन्होने किसानों को सुझाव देते हुये कहा कि मुनंगा, रतनजोत, करंज, लक्ष्मीताक आदि वृक्षों को खेत की मेड़ पर फसलों के बीच आसानी से लगा सकते है, इससे पर्यावरण संरक्षण में भी फायदा होगा। वृक्षजनित तेल कार्यक्रम सेमीनार में महारानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के डा. राकेश चौधरी ने कहा कि वृक्षजनिक तेल हेतु बुन्देलखण्ड की जलवायु उपयुक्त है तेल उत्पादन करने वाले वृक्ष अरण्डी के उत्पादन उसकी तकनीक तथा उपयुक्त प्रजाति जैसे टाइप-3, तराई-4 सहित अन्य प्रजातियों के बारे में विस्तार से बताया। वृक्षजनित तेल सेमीनार में महारानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मनमोहन डोबरियाल वैज्ञानिक एवी मजूमदार ने भी किसानों को नेम महुआ सहित अन्य वृक्ष जनित पेड़ों की महत्वपूर्ण जानकारी दी। वृक्ष जनित तेल मंडली सेमिनार में सर्वप्रथम जिलाधिकारी आंद्रा वामसी ने द्वारा फीता काटकर कृषि प्रदर्शनी का उद्घाटन किया, प्रदर्शनी में विभिन्न विभागों सहित स्वयं सहायता समूह, एफपीओ,ओडीओपी के स्टालों का निरीक्षण किया तथा योजनाओं की जानकारी ली। मंडलीय वृक्ष जनित तेल सेमिनार का दीपप्रज्जवलित कर सेमीनार का शुभारम्भ हुआ। सेमीनार का संचालन आरके सिंह द्वारा किया गया। इस मौके पर जेडीए एसएस चौहान, प्रभारी डीडी कृषि केके सिंह, एसडीओ डिम्पल केन, संजीव कुमार सिंह, संजय कुमार, विवेक कुमार, बीएसए विपिन कुमार, आशीष चौरसिया, अनिल कुमार, दीपक कुमार,अल्पना बाजपेई, नीरेंद्र ढाकड़ सहित अन्य अधिकारी, कर्मचारी व किसान उपस्थित रहे।



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